रहीं हैं आशा वर्कर रेलू वासवे. महाराष्ट्र की रहने वाली 27 वर्षीय रेलू वासवे गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की देखभाल के लिए 18 किमी तक खुद नाव चलाकर आदिवासी इलाकों में पहुंचती हैं.
दो बच्चों की मां रेलू वासवे ने बताया कि रोड के रास्ते आदिवासी इलाकों में पहुंचना मुश्किल था इसलिए मैंने जलमार्ग का रास्ता चुना. बच्चों की देखभाल करने के लिए मैं हर रोज खुद नाव चलाकर जाती हूं. कोरोना महामारी में बच्चों और महिलाओं को सुरक्षा करना हमारा महत्वपूर्ण काम हैं. ये बच्चों के लिए अपने साथ पौष्टिक आहार लेकर जाती हैं. रेलू ने कहा कि नाव चलाना कठिन तो होता है लेकिन एक मां होने के नाते मुझे दूसरे बच्चों की तकलीफ के बारे में पता है इसलिए मैं ये काम कर रही हूं.
कोरोना महामारी के समय ये आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं फ्रंट वॉरियर की भूमिका निभा रही हैं. रेलू वासवे को इस काम के लिए हमारा सलाम. एनआई के इस ट्विट को लोग को बेहद लाइक कर रहे हैं. कई यूजर्स ने ट्विटर पर लिखा है कि, ‘सरकार इस महिला को एक बोट दे दे.’ कुछ ने तो मोदी जी को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में रेलू के संघर्ष की कहानी सुनाने के लिए कहा है.
Maharashtra: Relu Vasave, an Anganwadi worker from Nandurbar rows 18 km daily to attend to children under 6 yrs of age & expecting mothers in interior villages.
She says, "Rowing daily is tough but it's important that babies & expecting mothers eat nutritious food & be healthy" pic.twitter.com/Y7ObYdVfSE
— ANI (@ANI) November 23, 2020