क्या कोरोना वायरस हवा में भी घूमता है। यह किस प्रकार से हवा में घूमते हुए इंसानी शरीर में प्रवेश कर सकता है। खांसने या छींकने के दुष्प्रभाव कैसे हो सकते हैं। ऐसे ही तमाम सवालों को लेकर पूरे विश्व में एक बहस छिड़ी हुई है। संसार के अनेक वैज्ञानिक इन सवालों के जवाब जानने के लिए बुरी तरह से उलझे हुए हैं। हर किसी को इस सवाल का जवाब जानने की उत्सुकता है। वहीं इस बहस को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैज्ञानिक डा. मारिया वान ने भी व्यक्तिगत तौर पर सहमति जताकर खासा चर्चित कर दिया है । वान का मानना है कि खांसने व छींकने से हवा में कोरोना के वायरस घूमते हैं। उन्होंने कहा कि जोर से खांसने, छींकने या जोर से बात करने से बनने वाले ऐरोसल यानि कि थूक या लार का बादल बनता है,यह एक बार पैदा हो गया तो ये ऐरोसॉल हवा में काफी समय तक मौजूद रह सकता है।कोरोना सक्रंमित व्यक्ति का यह लार हवा में रहकर दूसरों को नुक्सान पहुंचा सकता है।
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हालांकि यह कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है, मगर पूरे विश्व में इस पर जोरदार बहस छिड़ी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि बेशक यह प्रमाणित नहीं है, मगर इससे सतर्क रहने की आवश्यकता जरूर है। इस हवा में फैले लार की वजह से सबसे अधिक नुक्सान अस्पताल में काम करने वाले स्टॉफ को हो सकता है। इसलिए अस्पताल में काम करने वाले डाक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों को इससे सतर्क रहने की जरूरत है। इससे भी अधिक लोगों को हर वक्त मास्क पहनने की अधिक आवश्यकता है। मास्क ही लोगों को हवा में घूमने वाले वायरस से काफी अधिक तक बचा सकता है। लोगों को टे्रन, प्लेन, बस व अन्य कहीं भी यात्रा करने के दौरान मास्क पहनने की जरूरत है। न्यूयार्क टाईम्स की रिपोर्ट के अनुसार 32 देशों के करीब 240 वैज्ञानिकों ने भी इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखकर इस तथ्य को स्पष्ट करने के लिए कहा है। हालांकि इस पर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है, मगर इस मुद्दे को लेकर विश्व भर में एक बड़ी चर्चा और शुरू हो गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि इस पर रिसर्च की जरूरत है। मगर तब तक लोगों को अपने स्तर पर बचाव का हर प्रयास जरूर अपनाना चाहिए। लोगों को बार अपने मुंह, आंख व नाक को छूने से बचना चाहिए। बार बार साबुन से हाथ धोना चाहिए तथा मास्क व सोशल डिस्टेंस का प्रयोग भी बेहद जरूरी है।